What is meditation and How to do meditation? (Part-1)
तो दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं मेडिटेशन(ध्यान) के बारेमें। दोस्तों आज की भागमारा की जिंदगी और कंपटीशन की जिंदगी में आपको भी पता है कि हम अंदर-अंदर से खोखले होते जा रहे हैं। आज हमें जितनी जीवन में ध्यान करने की आवश्यकता है उतनी पहले कभी आवश्यकता नहीं थी।
तो आज हम समझने जा रहे हैं मेडिटेशन को। मेडिटेशन मतलब ध्यान,ध्यान मतलब कुछ नहीं करना सिर्फ आंख बंद करके बैठना। ध्यान मैं आपको कुछ नहीं करने का है कुछ नहीं करने का यानी आपके देवी देवताओं भगवान का नाम भी नहीं लेने का है, आपके गुरुओं का भी नाम नहीं लेने का है, कुछ भी मंत्र जाप भी नहीं करने का है या फीर कोई भी देवी देवताओं की अपने गुरुओं की भगवान की छवि(चित्र) भी हमारे अंदर भीतर मनो मन सामने नहीं रखनी है। क्योंकि आप कुछ भी करोगे तो मतलब वह मन से होगा तो मतलब मन को थकान तो लगेगी ही। यह वैसा ही है कि आप अच्छी दिशा में चल कर जाओ तो भी आपके पैर दुखेंगे अब बुरी दशा में चल कर जाओ तो भी आपके पेर दुखेंगे। आप मंदिर जाओ या श्मशान जाओ दोनों ही स्थिति में आपके पैर तो दुखेंगे ही। पैरों को अगर आराम देना है, तो कहीं भी नहीं जाना चाहिए। जप करोगे तो भी मन को थकान लगेगी ही। मन को शांति तो तभी मिल सकती है जब मन पूर्णतः विश्राम में हो। मन को शांति देना उसी का नाम ध्यान है। मन की शांति हम सदैव बाहर खोजते हैं, लेकिन वास्तव में वह तो बाहर है ही नहीं। वैसे सुख भी हम बाहर खोजते हैं,किसी व्यक्ति या किसी भौतिक वस्तु में लेकिन सुख भी बाहर नहीं है। और ऐसे ही परमात्मा भी हम बाहर खोजते हैं, लेकिन परमात्मा भी बाहर नहीं है। तो यह तीनों चीज बाहर नहीं है, तो कहां है? यह तीनों चीज हमारे ही भीतर है। जब कि लोग मन की शांति, सुख और परमात्मा की खोज में सारी दुनिया में भटकते रहते हैं। आपको जिस स्थान पर भी मन की शांति अनुभव होती है वह शांति उस स्थान की है आपकी नहीं है। आपको जिस व्यक्ति और वस्तु में से सुख मिल रहा है वह भी आपको उन पर डिपेंडबल बना देगा। तो वह व्यक्ति या वस्तु आपसे दूर चली गई तो आप वापीस दुखी हो जाओगे। या फीर वह वस्तु आपके पास रह भी गई तो भी थोड़ा उसके उपभोग के बाद आप उसे अब जाओगे और उसमें से सुख मिलन बंद हो जाएगा। वास्तव में भौतिक वस्तु में हम जो सुख खोज रहे हैं वह सुख नहीं है वह सिर्फ सुविधा है सच्चा सुख आत्मसुख है। इसलिए आप दिन में एक ऐसा कार्य जरूर करें जो किसी को दिखाने के लिए नहीं हो पर अपनी आत्मा को सुखी करने के लीये हो, अपनी आत्मा को प्रसन्न करने के लीये हो। हम दुनिया को प्रसन्न करने में जी जान लगा देते हैं पर कभी अपनी आत्मा को प्रसन्न नहीं करते हैं।
ध्यान में लोग कुछ ना कुछ जाप इसलिए करते हैं ताकि उसको विचार ना आए। आप विचार ना आए इसलिए मन को व्यस्त रखते हो। तो फिर मन को आराम कहां? आप विचार करो या जाप करो मन तो व्यस्त रहता ही है। विचारों से मुक्ति का मार्ग जाप नहीं है। क्योंकि जब भी ध्यान में बैठेंगे तो हमें बहुत सारे विचार आ सकते हैं। तो विचारों से निजात पाने के लिए लोग ध्यान में जप करते है। विचारों से मुक्ति का मार्ग विचारों को केवल देखना है। ध्यान करते समय आने वाले विचार को केवल देखें। या फिर अपने भगवान की छवि सामने रखते हैं। वह भी नही करना है। कुछ लोग ध्यान में कुछ श्वासो-श्वास फी प्रक्रिया करते हैं या फिर कुछ ओम वगैरा का उच्चारण करते हैं। तो वह भी नहीं करना है यानी कुछ नहीं करना वही ध्यान है।
दूसरा तो प्रश्न आता है कि यदि ध्यान में हमें जप भी नहीं करना है और हमें किसी देवी देवता की कुछ इमेज भी सामने(मनमें) नही रखनी है। या तो हमें कुछ श्वासो-श्वास की प्रक्रिया भी नहीं करनी है तो हमें हमारा चित कहां पर रखना है? तो उसका जवाब है कि ध्यान में हमने हमारा चित सहस्त्रार चक्र पर रखना है। सहस्त्रार चक्र मतलब उसका स्थान होता है हमारे तालु भाग(सिर का सबसे उपर का भाग) में जहां पर ब्राह्मण लोग चोटी रखते हैं वहां पर सहस्त्रार चक्र का स्थान होता है। उसी जगह पर हमें ध्यान करते समय चित अपना रखना है। दोस्तों वैसे तो कुल हमारे 14 चक्र होते हैं। स्थूल शरीर के सात चक्र और सूक्ष्म शरीर के सात चक्र। पर सूक्ष्म शरीर के सात चक्र की बातें हम यहां पर नहीं करेंगे क्योंकि वहां पर ध्यान करना समाज में रहकर संभव नहीं है। जो हिमालय के योगी है वह वहां पर रहकर ( वहां पर चित रखकर) ध्यान करते हैं। सुक्ष्म शरीर के सात चक्र जहां पर हमारे स्थूल शरीर के सात चक्र समाप्त होते हैं मतलब मस्तिष्क पर सात चक्र समाप्त होता है उसके ऊपर से फिर से मूलाधार से लेकर सहस्रार हमारे ऊपर की तरफ वह सूक्ष्म शरीर के सात चक्र रहते हैं।
तो स्थुल और सुक्ष्म शरीर के सात चक्र का नाम समान ही है वह कुछ इस प्रकार है मूलाधार चक्र, स्वादिष्ठान चक्र, नाभि चक्र(मणीपुर चक्र), हृदय चक्र(अनाहत), विशुद्धि चक्र, आज्ञा(आग्या-अज्ना) चक्र और सहस्त्रार चक्र इसमें से हमें सहस्त्रार चक्र(तालुभाग) पर चित्त रखकर 30 मिनट ध्यान करना है क्योंकि सहस्त्रार चक्र है वह हमारे शरीर का द्वार है वहां से हमारे शरीर की भीतर की ओर बाहर की ऊर्जा आप-ले होती है तो वहां पर चित रखकर ध्यान करने से ऑटोमेटिक सारे चक्र में ऊर्जा मिल ही जाती है।
हम हमारे हाथ का स्पर्श जहां पर भी करते हैं जीत हमारा वहां पर चला जाता है। इसीलिए ध्यान करने से पहले हमारे दाये हाथ की हथेली को हमें मस्तिष्क के सबसे ऊपर के भाग तालुभाग पर रखकर उसको तीन बार क्लोकवाइज घूमना है उसके बाद धीरे-धीरे हमारा हाथ नीचे घुटनों पर लाकर रख देना है उसके बाद हमें ध्यान की शुरुआत करनी है।
ध्यान करने से पहले हमें एक गाय के घी का दीपक जलाना है अग्नि से हमारे विचार समाप्त होते हैं उसके बाद हमें गुरु आह्वान करना है जिसमें यह मंत्र बोलना है
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:, तस्मै श्री गुरवे नम:, तस्मै श्री गुरवे नम:।।
उसके बाद हमें तीन बार और एक मंत्र बोलना है जो मंत्र कुछ इस प्रकार से है
मैं एक पवित्र आत्मा हूं। मैं एक शुद्ध आत्मा हूं।
मैं एक पवित्र आत्मा हूं। मैं एक शुद्ध आत्मा हूं।
मैं एक पवित्र आत्मा हूं। मैं एक शुद्ध आत्मा हूं।
उसके बाद 30 मिनट सहस्रार चक्र पर चित रखकर हमें ध्यान करना है। ध्यान समाप्ति के बाद हमें विश्व कल्याण के लिए प्रार्थना करनी है जो कुछ इस प्रकार से है….
हे परमात्मा, आज हम सभी पवित्र आत्माएं। आपको सच्चे हृदय से प्रार्थना करते हैं कि,सारे विश्व में शांति हो। सारे विश्व के सभी आत्माओं की, आध्यात्मिक एवं सर्वांगीण उन्नति हो। हमारे पूज्य सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामी जी का स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे, एवं उनकी आयु दीर्घ हो। यही हमसभी पवित्र आत्माओं की शुद्ध प्रार्थना है। शुद्ध प्रार्थना है। शुद्ध प्रार्थना है।
उसके बाद शांति पाठ करना है
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
यहां पर हमारे ध्यान की समाप्ति होती है अब हम धीरे-धीरे आंखें खोल सकते हैं।
हिमालय में कुछ ध्यान पद्धति ऐसी भी है जीसमे योगी एक एक चक्र पर 7-7 साल ध्यान करते है तो टोटल सात चक्र पर 49 साल ध्यान करते है। तब जाकर उन्हें पूर्णता प्राप्त होती है। लेकिन कुछ पद्धति ऐसी है जिसमें सिर्फ सहस्रार चक्र पर ध्यान करना सिखाया जाता है सहस्त्रार चक्र पर चित रखने से आपके बाकी के चक्र तो वैसे ही क्लियर हो जाएंगे वैसे ही मजबूत हो जाएंगे।
अगर आपको समाज में रहकर ध्यान करना है तो आपको सामूहिकता में जाना पड़ेगा। समाज में रह कर ध्यान अकेले नहीं किया जा सकता है। अकेले में ध्यान करना है तो फिर आप हिमालय चले जाओ। सामूहिक का मतलब आप 10 लोग हैं 15 लोग 20 लोग 25 लोग आप मिलकर ध्यान करो।एक फिक्स टाइम रखो कि उसी टाइम हम मिलेंगे और नियमित ध्यान करेंगे। अकेले ध्यान करने से हमारी चित शक्ती तो बढ़ जाती है पर चित पर नियंत्रण नहीं आ सकता है। जबकि सामूहिकता में हम जब ध्यान करते हैं तो हमारा चित पर पूरा नियंत्रण आ जाता है। इसीलिए सुबह का ध्यान अकेले करो और शाम का ध्यान सामूहिक ता में करो। इससे क्या होगा कि आपकी चित शक्ती भी बढ़ेगी और चित पर नियंत्रण भी आ जाएगा। कुछ लोगों का कहना है कि हम संडे(रविवार) को एक साथ 6-7 घंटे ध्यान कर ले तो चलेगा? नहीं वह नहीं चलेगा। हमें नियमित रोज आधा घंटा ध्यान करना पड़ेगा। आप उदाहरण के रूप में मोबाइल को ले लो आप हर रोज मोबाइल को चार्ज करते हो और पूरा दिन चलाते हो और बैटरी खत्म होती है और शाम को चार्ज करते हो। ऐसा नहीं करते हो कि सिर्फ संडे को पुरा चार्ज करते हो और फिर पूरा वीक चलता है। वैसे ही दिन भर विचारों की धूल हमारे ऊपर चढ़ती रहती है।तो जैसे पीतल का कोई बरपन होता है उसको हम रोज मांजते हैं। वैसे ही हमें अपने आप को रोज आधा घंटा ध्यान से चित का स्नान करना है।
क्या ध्यान मैं आपको ज्यादा विचार आते हैं? तो उन्हें आप आत्मा बनकर सिर्फ देखो कि मेरा शरीर विचार कर रहा है एक साक्षी भाव से सिर्फ विचार को देखना है। तो उसको रोकने का प्रयत्न मत करो। क्योंकि आप जब भी रोकने का प्रयत्न करते हो तो फिर से शरिर स्तर पर आ जाते हो। दुसरा ध्यान करना और ध्यान लगना उसमें भी फर्क है। मतलब आप 30 दिन ध्यान करते हो तो उसमें से आपको ऐसा भी होता है कि सिर्फ 10 दिन ही ध्यान लगे 20 दिन ना लगे। जैसे खाना खाना और उसको पचाना वह अलग बात है।यदि हमे खाना पचता नहीं है तो उसका हमारे शरीर को इतना बेनिफिट नहीं मिलता है।खाना खाना और पचाना भी चाहिए। वैसे ध्यान करना और ध्यान लगना भी चाहिए। तो क्या आपको ध्यान लगाने के लिए प्रयत्न करना है नहीं दोस्तों तो यह फिर गलत हुआ ध्यान में कुछ भी प्रयत्न नहीं करना है ध्यान लगाने के लिए भी प्रयत्न नहीं करना है यदि ध्यान लगे तो भी ठीक है ध्यान नहीं लगे तो भी ठीक है बस हमें नियमित 30 मिनट ध्यान करना ही है। ध्यान लगे या ना लगे फिर भी।
ध्यान में यदि आपके विचार आते हैं तो आने दो ध्यान आपको नहीं लग रहा है तो भी ठीक है आप कुछ भी विचार रोकने के या फिर ध्यान लगाने के प्रयत्न मत करिए क्योंकि प्रयत्न हमें शरीर स्तर पर ला देते हैं। आप अपने आप को ध्यान में एक आत्मा समझिए और आत्मा समझकर आप शरीर को देखिए कि मेरा शरीर विचार कर रहा है मैं नहीं। मैं तो एक शुध्ध और पवित्र आत्मा हूं ऐसा भाव अपने भीतर ध्यान में रखोगे तो आपको धीरे-धीरे विचार आना बंद हो जाएंगे दूसरा योगासन और प्राणायाम यह योग नहीं है। जैसे ही 21 जून का योग दिन आता है तो तुरंत हम योगासन करने लग जाते हैं। तो यह सारे योगासन सिर्फ एक एक्सरसाइज है जिसे हमारे शरीर के अंग लिवर,किडनी,ब्रेईन वगैरा अंगों को तो फायदा मिलता है लेकिन हमारे मानसिक अवयव जैसे कि चंद्रनाडी, सूर्यनाडी, मध्यनाडी, हमारा चीत, हमारे शरीर के सातचक्र, हमारे शरीर के आसपास के आभामंडल(aura) उनको फायदा नहीं मिलता है। योगा डे पर हम भारतवासी यह योगासन करके विश्व को भी एक गलत संदेश दे रहे हैं। विदेश के लोग भी हमारा देखकर सिर्फ योगासन कर रहे हैं। क्योंकि योगा डे भारत ने विश्व को दिया हुआ दिन है तो उसे दिन भारत के लोग जो करेंगे वह लोग तो उसकी नकल ही करेंगे।
वास्तव में योगा डे पर हमें ध्यान करना चाहिए मेडिटेशन करना चाहिए योग का मतलब है ध्यान या फीर समाधि है। तो जब ध्यान करते हो तो ही आप योग कर रहे हो ऐसा समझो क्योंकि योगासन और प्राणायाम से अपने शरीर के चक्र डेवलप(विकास) नहीं होते अपना आभामंडल(Aura) डेवलप नहीं होता है। योगासन सिर्फ एक्सरसाइज है जिससे आपका शरीर तो स्वस्थ होगा लेकिन आप मानसिक रूप से उसे मजबूत नहीं हो सकते हो। हम जो अलग-अलग योगासन कर रहे हैं उसका उल्लेख भी महर्षि पतंजलि ने अपने पुस्तक में नहीं किया है उसने योगासन का मतलब एक ऐसा आसन जिसमें हम ध्यान करने के लिए कंफर्टेबल बैठ सके।
दोस्तों यह तो सारी बातें हुई थ्योरी की लेकिन ध्यान जब तक आप करके नहीं देखोगे तब तक आपको उसकी प्रेक्टिस नहीं होगी। जैसे पानी में कैसे तैरना है वह सिर्फ थ्योरी से नहीं जान सकते हैं पानी में उतरकर तैरने की प्रैक्टिस करनी पड़ती है। ध्यान में सबसे पहले आपका शरीर, मन और बुद्धि का विरोध होगा आपका शरीर 30 मिनट शांति से बैठने में विरोध करेगा। शरीर में जहां कभी खुजली ही नहीं आती है वहां पर खुजली आएगी। यदि शरीर मान भी गया तो फिर मन विरोध करेगा मन कहेगा चल मोबाइल देख,जा टीवी देख, जा बाहर घूमने जा। यदि मन मान गया तो फिर बुद्धि विरोध करेगी। जो काम हम अभी करने वाले नहीं थे ऐसा काम बतायेगी कि ध्यान छोड़कर यह काम तू पहले कर। तो यह सारी विरोध-बाधाए छोड़कर आपको नियमित रोज 30 मिनट ध्यान को देना है। यह सारा विरोध आपके ही अंदर की नकारात्मक ऊर्जा कर रही है क्योंकि आप ध्यान करोगे तो उसका नाश होने वाला है। तो ध्यान में आपके विचार कम आए, ध्यान में आपको एक सपोर्ट मिले इसीलिए एक बाबा गाड़ी के रूप में नीचे यूट्यूब का वीडियो दिया है इसका सहारा लेकर आप रोज नियमीत 30 मिनीट ध्यान कर सकते हो।
क्षमा चाहता हूं कि यह पोस्ट थोड़ी लंबी हो गई। लेकिन यह पार्ट-1 था तो आपको थोड़ा विस्तृत जानकारी देना जरूरी था। लेकिन पार्ट-2 से पोस्ट थोड़ी छोटी होगी ताकि आपको पढ़ने में आसानी हो। ध्यान आपको ज्यादा से ज्यादा लगे उसके लिए आपको क्या करना है वह हम अगली पोस्ट में जानेंगे । यदि इस पोस्ट के बारे में आपको कुछ प्रश्न है तो आप नीचे कमेंट जरुर करिए। हमे ट्विटर पर फॉलो करना मत भूलिएगा। यदि आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगी तो मेरे गुरुदेव श्री शिवकृपानंद स्वामीजी को धन्यवाद कीजिए क्युंकी मैं तो सिर्फ आपको ज्ञान परोसने वाला वेईटर हूं। बाकी रसोई तो उसिने बनाई हुई है। यह ज्ञान मेरे गुरूदेव का है। मेरी बातो से किसी को कुछ बुरा लगा हो तो दिल से क्षमा चाहता हुं। आपका पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद। मिलते हैं अगली पोस्ट में तब तक के लिए बाय-बाय और जय गुरुदेव।
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